शुक्रवार, 6 नवंबर 2009

उसकी नहीं कोई मंजिल!

अपने घर को चिराग की रोशनी से रोशन करने वालों की दास्तां बयां नहीं की जाती, बल्कि अपने चिराग से दूसरे के घरों का अंधेरा दूर करने वालों की कहानियां सुनाई जाती है। बरसों बीत जाएंगे... तो ऐसी ही कहानियां शशिकांत कोन्हेर के बारे में सुनाई जाएगी। अपने छालों के दर्द से ज्यादा खुशी उन्हें दूसरों की तकलीफ दूर करने पर महसूस होती है। आगे चलना उनकी आदत है. और हम उम्मीद करते हैं कि ये आदत हमेशा बरकरार रहेगी। शशि भैया, वो शख्स हैं, जो अपनी आंखों से दूसरों के ख्वाब़ देखते हैं और उन्हें सच करने की जिद भी पाल लेते हैं। वे एक ऐसे मुसाफ़िर हैं, जिनके नाम सफ़र दर सफ़र सफलता की दास्तां दर्ज होती जा रही है। ये सफ़र ही उनका स्वभाव है, जो उन्हें दूसरों से अलग करता है। हम सबके लिए वो चले जा रहे हैं... सफर दर सफर... पार करते जा रहे हैं मंजिल दर मंजिल... क्योंकि हम सबके हित में उनकी कोई एक मंजिल नहीं है...

मुसाफिर हैं लेकिन नहीं कोई मंजिल,

जहां दिन ढलेगा, वहीं रात होगी।

-यशवंत गोहिल, डिप्टी न्यूज़ एडिटर, हरिभूमि, बिलासपुर

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