अंधेरे में टिमटिमाता एक दिया... आंधियों के बीच खड़ा एक दरख्त... सूरज को ढंकने वाला काला मेघ... रेगिस्तान में उगने वाला बबूल... पहाड़ों का सीना चीरकर बहने वाली धारा... दरिया को थामने वाला बांध... समंदर के सीने में मचलता जहाज... चांद छूने वाला हाथ... हवाओं से लड़ने वाली नाव... और अंटार्कटिक फ़तह करने वाला पांव... कलम के साथ कलमकारों के लिए से संघर्ष से भरा सफ़र तय करता वो शख्स... जिसकी देह पर रखी जा रही है तरक्की की बुनियाद... जी हां, वो शख्स है शशिकांत कोन्हेर...। जो पिछले दो दशकों से अपनी कलम की स्याही से संघर्ष का नया शंखनाद कर रहा है। एक ऐसी अज़ीम शख्सियत, जिसने समय के सीने पर लिखा है कामयाबी का एक नया हलफनामा। धुन का पक्का, इरादे का मज़बूत, कलम का वो जांबाज सिपाही... जिन्हें लगातार दो बार अध्यक्ष चुनकर बिलासपुर प्रेस क्लब के सारे सदस्य गौरवान्वित हैं। कलम के साथ कलमकारों के लिए उन्होंने इन चार सालों में जो कुछ किया है, वे चंद अल्फ़ाजों में नहीं समेटे जा सकते। अपनी नौकरी, अपना घर, अपना परिवार... और अपना पेट सब कुछ भूलकर... गरीब कलमकारों के सिर पर छांव के लिए उन्होंने कैसे जुनून की सारी हदें पार की हैं... कितने सफ़र किए हैं... किन घरों में... कैसे और कब-कब दस्तक दी है, मैंने... और हम सबने देखा है। जिद और जज्बे में उन्होंने आठ महीने तक अन्न का कौर तक नहीं उठाया... आज हमारे होठों पर मुस्कान के मोती बिखेरने वाले उस शख्स के पांवों में कितने छाले हैं... करीब से जानने वाले सब कुछ जानते हैं। शशि भैया, आपने जो दिया है... उस कर्ज को चुकाना नहीं चाहते हम। हम जीना चाहते हैं... आपके ऋणी बनकर... एक पूरी ज़िंदगी... आपके साथ…!
मैं अक्सर ये सोचता हूं कि आज आप जिस मुकाम पर हैं, वहां सिर्फ इस शेर के बारे में सोचा जा सकता है-
‘ये किस मुकाम पर पहुंचा दिया जुनूं ने उसे,
जहां से आसमां भी नीचा दिखाई देता है।’
-अनिल तिवारी
mujhe pres club ka sadsayata lena hai muhhe isake liye kaiya karna ho.
जवाब देंहटाएंshyam
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